दृष्टिहीन भी बन सकते हैं जज: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
भारत की सर्वोच्च अदालत, Supreme Court, ने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि दृष्टिहीनता या दिव्यांगता न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति के लिए बाधा नहीं हो सकती। अदालत ने स्पष्ट किया कि दिव्यांगता के आधार पर किसी को न्यायिक सेवाओं से बाहर नहीं रखा जा सकता। इस फैसले के तहत मध्य प्रदेश सरकार के उस नियम को रद्द कर दिया गया है, जो दृष्टिहीन व्यक्तियों को जज बनने से रोकता था।
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सुप्रीम कोर्ट का तर्क
- Rights of Persons with Disabilities Act, 2016 के तहत दिव्यांग व्यक्तियों को समान अवसर और उचित सहायता प्रदान करना अनिवार्य है।
- कोर्ट ने कहा कि दृष्टिहीन व्यक्तियों को परीक्षा देने और न्यायिक सेवाओं में काम करने के लिए तकनीकी सहायता और scribe जैसी सुविधाएं दी जानी चाहिए।
- यह फैसला न्यायिक सेवाओं में समावेशिता और समानता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
फैसले का महत्व
- यह निर्णय न केवल दृष्टिहीन बल्कि अन्य दिव्यांग व्यक्तियों के लिए भी समान अवसरों का मार्ग प्रशस्त करता है।
- यह भारतीय संविधान के समावेशी दृष्टिकोण और UN Convention on the Rights of Persons with Disabilities के अनुरूप है।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दिव्यांगता के कारण किसी व्यक्ति की क्षमता पर सवाल उठाना अनुचित है।
FAQs
1. क्या दृष्टिहीन व्यक्ति अब सभी राज्यों में जज बन सकते हैं?
हां, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दृष्टिहीन व्यक्तियों को सभी राज्यों में न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति का अधिकार मिल गया है।
2. क्या दिव्यांग व्यक्तियों को परीक्षा में विशेष सुविधाएं मिलेंगी?
जी हां, उन्हें scribe और तकनीकी सहायता जैसी सुविधाएं दी जाएंगी ताकि वे समान अवसरों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें।
3. क्या यह फैसला अन्य दिव्यांग श्रेणियों पर भी लागू होता है?
हां, यह फैसला सभी प्रकार की दिव्यांगता वाले व्यक्तियों पर लागू होता है, जिससे उन्हें न्यायिक सेवाओं में समान अवसर मिल सके।
यह निर्णय भारत में न्यायिक समावेशिता और समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।